उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय में ‘एक दीप विश्वविद्यालय के नाम’ प्रदर्शनी: भारतीय संस्कृति और कौशल संवर्धन का अनूठा संगम
हरिद्वार: आगामी दीपोत्सव पर्व की धूम के बीच, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय भारतीय संस्कृति और पारंपरिक कौशल के अनूठे संगम का साक्षी बना। शिक्षा विभाग और पंचगव्य यूनिट के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार को “एक दीप विश्वविद्यालय के नाम” विषय पर आधारित एक विशेष स्वनिर्मित एवं सज्जित दीप निर्माण प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इस भव्य आयोजन ने न केवल विद्यार्थियों के सृजनात्मक कौशल को मंच प्रदान किया, बल्कि भारतीय परंपराओं के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी साबित हुआ। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेशचंद्र शास्त्री ने इस पहल की सराहना करते हुए इसे भारतीय संस्कृति को नई दिशा देने वाला बताया।
“एक दीप विश्वविद्यालय के नाम”: प्रदर्शनी का भव्य आयोजन और उद्देश्य
उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित “एक दीप विश्वविद्यालय के नाम” प्रदर्शनी दीपोत्सव के पावन अवसर पर एक विशिष्ट पहचान बनकर उभरी। शिक्षा विभाग और पंचगव्य यूनिट के संयुक्त प्रयासों से इस प्रदर्शनी का खाका तैयार किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति की जड़ों से जोड़ना और उनमें पारंपरिक कला एवं कौशल के प्रति जागरूकता पैदा करना था। इस आयोजन में विद्यार्थियों ने अपने हाथों से विभिन्न प्रकार के दीपक बनाए और उन्हें रचनात्मक रूप से सजाया, जिससे प्रदर्शनी में रंग-बिरंगे दीयों का अद्भुत नजारा देखने को मिला।
यह प्रदर्शनी केवल दीये बनाने तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह पर्यावरण-अनुकूल दीपावली मनाने और प्लास्टिक एवं हानिकारक रसायनों से बने उत्पादों के बजाय स्थानीय एवं प्राकृतिक सामग्री के उपयोग को बढ़ावा देने का भी एक सशक्त माध्यम बनी। पंचगव्य यूनिट की सहभागिता ने इस पहल को और भी खास बना दिया, क्योंकि इससे पारंपरिक भारतीय गो-आधारित उत्पादों के उपयोग के प्रति भी जागरूकता बढ़ी। “एक दीप विश्वविद्यालय के नाम” का यह विषय विश्वविद्यालय समुदाय के बीच एकता और अपनत्व की भावना को भी दर्शाता है, जहां हर विद्यार्थी और कर्मचारी अपने संस्थान के प्रति समर्पण और प्रेम व्यक्त करता है। ऐसे आयोजनों से विद्यार्थियों में न केवल कलात्मक क्षमता विकसित होती है, बल्कि उनमें अपनी संस्कृति और विरासत के प्रति गौरव का भाव भी जागृत होता है।
कुलपति और अतिथियों के विचार: संस्कृति, कौशल और अंतरराष्ट्रीय जुड़ाव
प्रदर्शनी के अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेशचंद्र शास्त्री ने विद्यार्थियों के असाधारण सृजनात्मक कौशल की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। उन्होंने अपने संबोधन में इस बात पर जोर दिया कि ऐसे आयोजन केवल मनोरंजन के लिए नहीं होते, बल्कि ये भारतीय संस्कृति और कौशल संवर्धन को नई दिशा प्रदान करते हैं। कुलपति ने कहा कि आज के आधुनिक दौर में जब पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है, तब अपनी जड़ों से जुड़े रहना और अपनी पारंपरिक कलाओं को पुनर्जीवित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए उम्मीद जताई कि ऐसे प्रयास भविष्य में भी जारी रहेंगे, जिससे युवा पीढ़ी अपनी समृद्ध विरासत से प्रेरणा ले सकेगी।
कार्यक्रम में ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर से प्रवासी भारतीय वीरप्रकाश एवं जोधप्रकाश मुख्य अतिथि के रूप में ऑनलाइन जुड़े। उन्होंने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की जननी है, और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित करने के लिए आज के शिक्षार्थियों को संकल्प लेना चाहिए। उनका यह संबोधन न केवल विद्यार्थियों के लिए प्रेरणादायक था, बल्कि इसने संस्कृत और भारतीय संस्कृति को वैश्विक पटल पर ले जाने के विश्वविद्यालय के प्रयासों को भी बल दिया। पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. अरविंद नारायण मिश्र ने भी विद्यार्थियों की रचनात्मकता को सराहा और कहा कि यह पहल भारत की सांस्कृतिक जड़ों को और मजबूत बनाएगी। इन सभी गणमान्य व्यक्तियों के विचारों ने इस प्रदर्शनी के महत्व को और अधिक उजागर किया, इसे केवल एक स्थानीय आयोजन से कहीं बढ़कर एक सांस्कृतिक आंदोलन का रूप दिया।
विद्यार्थियों का उत्साह और सर्वांगीण विकास का माध्यम
उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित इस दीप निर्माण प्रदर्शनी ने विद्यार्थियों को अपनी रचनात्मकता को व्यक्त करने का एक सुनहरा अवसर प्रदान किया। शिक्षा विभाग और पंचगव्य यूनिट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम ने विद्यार्थियों में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार किया। विभागाध्यक्ष डॉ. प्रकाश चंद्र पंत ने इस बात पर जोर दिया कि सांस्कृतिक कार्यक्रम केवल पारंपरिक अनुष्ठान नहीं होते, बल्कि ये विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास और संस्कृति संरक्षण का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी हैं। ऐसे आयोजनों में भाग लेने से विद्यार्थियों में टीम वर्क, रचनात्मक सोच, समस्या-समाधान कौशल और सांस्कृतिक जागरूकता जैसे महत्वपूर्ण गुण विकसित होते हैं।
कार्यक्रम की संयोजक मीनाक्षी सिंह रावत ने बताया कि शिक्षाशास्त्र विभाग ऐसे आयोजनों के माध्यम से भारतीय कौशल और परंपराओं को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि हस्तनिर्मित उत्पादों को बढ़ावा देना न केवल एक कलात्मक अभ्यास है, बल्कि यह आत्मनिर्भरता और स्थानीय उद्यमिता को भी प्रोत्साहित करता है। इस प्रदर्शनी में विद्यार्थियों जैसे रोहित, सूरज, सुमन, भरतलाल, प्रशांत, अटल, आरती, हिमांशु, बालकृष्ण, वंदना, कमलेश आदि ने बड़े उत्साहपूर्वक भाग लिया। उनके द्वारा बनाए गए दीये न केवल कलात्मक थे, बल्कि उनमें पारंपरिक भारतीय कला और संस्कृति का सार भी झलक रहा था। इन विद्यार्थियों की सक्रिय सहभागिता ने यह सिद्ध कर दिया कि युवा पीढ़ी अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोने और उसे आगे बढ़ाने के लिए कितनी उत्सुक है।